the heat of war till india

युद्ध की तपिश भारत तक

the heat of war till india

the heat of war till india

रूस-यूक्रेन युद्ध की आंच आखिरकार भारत तक भी पहुंच गई। यूक्रेन में फंसे हजारों भारतीयों की सुरक्षित वापसी के लिए भारत सरकार दिन-रात कार्यरत है, अब वायुसेना ने भी अपनी मदद पहुंचाना शुरू कर दिया है। लेकिन कर्नाटक निवासी 21 वर्षीय छात्र नवीन की गोलाबारी में मौत ने देश को दुख से भर दिया। यूक्रेन में प्रतिक्षण अनेक लोगों की मौतें हो रही हैं, इनमें सैनिक, युवा, बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग शामिल हैं, हम भारत में बैठकर उनके प्रति केवल सहानुभूति ही जता पा रहे हैं, हमें दुख भी उतना नहीं होता क्योंकि यह इंसानी फितरत है कि जो उसके नजदीकी होते हैं, उनके निधन पर ही दिल रोते हैं। लेकिन जब नवीन के निधन की खबर आई तो पूरा देश शोकाकुल हो गया, जाहिर है वे एक भारतीय थे। इस त्रासदी जिसे राष्ट्राध्यक्षों के अहंकार ने पोषित करते हुए युद्ध के रूप में बदल दिया है, का दुष्परिणाम पूरी दुनिया को भुगतना पड़ रहा है। विशेष रूप से भारतीयों की बात करें तो यूक्रेन के सैनिकों ने अब उन्हें रूस के खिलाफ इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, जिससे भारत की चिंताएं और ज्यादा गंभीर हो गई हैं। यूक्रेन के राजदूत भारत में बैठ कर भगवान शिव से प्रार्थना कर रहे हैं कि यूक्रेन संकट टल जाए लेकिन वहीं यूक्रेन में वहां के सैनिक और संभव है लोग भी, भारतीयों के प्रति द्वेषपूर्ण बर्ताव कर रहे हैं।
 

  यूक्रेन युद्ध के लंबा खींचते जाने से रूस की आक्रामकता बढ़ती जा रही है। अब रूस के हवाले से यह भी सामने आ रहा है कि यूक्रेन परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिश में है, इससे पहले रूस अपने परमाणु हथियारों को पहले ही संभाल कर उनकी तैनाती कर चुका है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की लगातार आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं, उनका देश लगातार भीषण हमले झेल रहा है, लेकिन उनके बयान ऐसे हैं, जैसे यूक्रेन बड़ी कामयाबी हासिल कर रहा है और यह युद्ध वह जल्द जीत लेगा। हालांकि रक्षा विशेषज्ञ मान रहे हैं कि जेलेंस्की की जिद यूक्रेन पर भारी पड़ रही है। रूस और यूक्रेन एक ही सोवियत संघ से अलग हुए दो देश हैं, रूस की मांग सिर्फ इतनी भर थी कि यूक्रेन नाटो देशों से दूर रहे, क्योंकि इससे उसकी सुरक्षा को खतरा खड़ा हो रहा था, लेकिन यूक्रेन के राष्ट्रपति ने अमेरिका और नाटो देशों के बहकावे में आकर रूस को उत्तेजित कर दिया। जेलेंस्की ने यूरोपीय संसद के आपातकालीन सत्र को संबोधित करते हुए कहा है कि यूक्रेन,यूरोप में बराबर का सदस्य बनने की लड़ाई लड़ रहा है, यूरोपीय संघ यह साबित कर दें कि वह हमारे साथ है। वह हमें छोड़ेगा नहीं। हमारे साथ आने से यूरोपीय संघ और मजबूत होगा। आखिर यूरोप के देश किसके साथ आए हैं, जो वे यूक्रेन के साथ खड़ा होंगे। जिस समय भारत अपने घोषित दुश्मन पाकिस्तान और चीन से संघर्ष झेलता है तो यही यूरोपियन देश महज जुबानी जुगाली करके इतिश्री कर लेते हैं या फिर कुछ देश वह भी नहीं कर पाते। क्या जेलेंस्की किसी धोखे में जी रहे हैं, यह युद्ध शुरू होने से पहले अमेरिका और दूसरे देश लगातार कह रहे थे कि वे यूक्रेन के साथ खड़े हैं, लेकिन इस समय युक्रेन केवल अपने साथ खड़ा है और उसके सैनिकों और नागरिकों की लगातार मौतें हो रही हैं और यूरोपीय देश केवल हमदर्दी ही जता रहे हैं, क्या इसे ही दोस्ताना कहते हैं।
 

   इस युद्ध का परिणाम जो भी हो, लेकिन भारत सरकार को यूक्रेन में फंसे अपने प्रत्येक नागरिक को सुरक्षित बाहर निकालना होगा वहीं भविष्य की दुश्वारियों के लिए भी खुद को तैयार रखना होगा। जाहिर है, इस युद्ध की समाप्ति किसी भीषण प्रहार से हो सकती है, रूस की संवेदनाएं मर चुकी हैं और अब उसकी सेना जहां वैक्यूम बम का इस्तेमाल कर रही है, वहीं उनके निशाने पर अब नागरिक भी हैं। मकसद सिर्फ एक है किसी भी तरह से राष्ट्रपति जेलेंस्की को घुटनों पर लाया जाए और यूक्रेन की टॉप लीडरशिप को खत्म करके यूक्रेन पर अपना कब्जा जमाया जाए। छह दिन के युद्ध के बावजूद भारत की ओर से रूस के प्रति एक भी विपरीत शब्द या बात न किए जाने से यूक्रेन समेत उसके समर्थक देशों में बौखलाहट पैदा हो रही है। इस समय चीन और पाकिस्तान शांत होकर बैठे हैं, लेकिन यह तय है कि समय आने पर पश्चिमी देश जोकि यूरोप के प्रभाव में हैं, वे भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान की मदद करें या फिर चीन की हरकतें तेज हों। ऐसी रिपोर्ट हैं, जिनमें कहा जा रहा है कि तुर्की भारत विरोधियों का नया अड्डा बन चुका है। वैसे यह भी विचारणीय है कि इस युद्ध के बाद क्या रूस इतना ताकतवर रहेगा कि वह भारत जैसे अपने चिर मित्र के साथ खड़ा हो सके।
 

   रूसी राष्ट्रपति पुतिन यह मान कर चल रहे थे कि उनकी सेना एक दिन में यूक्रेन को तबाह कर देगी, लेकिन यह लड़ाई लंबी खींच रही है। ऐसे में रूसी अर्थव्यवस्था जहां तबाह हो गई है, वहीं यूरोपीय देशों के आर्थिक प्रतिबंध उसकी घेराबंदी कर चुके हैं। गौरतलब है कि इस युद्ध के वैश्विक होने का भी खतरा पुरजोर हो चुका है। नाटो देशों के लिए आर्टिकल-5 है, जिसके मुताबिक अगर इन देशों का एक भी नागरिक हताहत होता है, तो इस आर्टिकल को लागू कर दिया जाएगा, जिसके तहत नाटो देशों को भी अपने नागरिकों की रक्षा के लिए हथियार उठाने पड़ेंगे। बहरहाल, इस युद्ध का क्या परिणाम रहेगा, यह कोई नहीं जान पा रहा है। भारत की प्राथमिकता अपने लक्ष्य और जरूरतें होनी चाहिए और अपने नागरिकों को बचाने के लिए उसे सभी संसाधन झोंक देने चाहिए।